हम तम में हैं
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हम तम में हैं , पर तुमको क्या ?
तुमने दीप गगन में बाले !!
हम बेघर , बेदर , फुटपाथी ,
तुम सतखण्डी महल सँभाले !!
बना रहे रक्त को स्वेद हम ,
तुमने उससे मोती ढाले !!
जन - जन को हम अन्न दे रहे ,
मुँह से तुम छीनते निवाले !!
समिधा हम , आहुति यज्ञों की ,
पर तुम वर पर डाका डाले !!
जो हक़ छीने , दौड़ पड़ो सब ,
उस पर खुखरी औ ' कटिया ले !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 43
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