शंख - ध्वनि दूर
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बुझा अभी ,
जलता अंगारा ।
मद्धित है रोशनी
हालत है सोचनी ;
दिन है अब
साँझ का उतारा ।
बुझा अभी ,
जलता अंगारा ।
पका मोतियाबिन्द ,
धृतराष्ट्र हुआ हिन्द ;
शंख - ध्वनि दूर
पार्थ द्वारा ।
बुझा अभी ,
जलता अंगारा ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 33
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