करुणा गप है
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पिघल रहा है
दर्द ,
कौन रूमालों लेगा ?
चले गये
सारे हमदर्दी
आँख चुराकर ,
सम्बन्धों पर
प्रश्न - चिन्ह अनगिनत
लगाकर ;
ग़ैर कौन
जो नेह - छोह को
भाषा देगा ?
साँसत में है
साँस
और गूँगे आश्वाशन ,
अन्धी - बघिर सभा है ,
कौन सुनेगा
रोदन ?
करुणा गप है
सच कहना
क्या चीर बढ़ेगा ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 56
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