ख़ामोशी खड़ी है
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गया ,
सब कुछ गया ।
रोशनी थी ,
रास्ता था ,
मधु - पगा सब वास्ता था ;
किन्तु
ख़ामोशी खड़ी है ,
ओढ़कर कुछ नया ।
गया ,
सब कुछ गया ।
दर्द है ,
हमदर्द गायब ,
मूल हक़ की फर्द गायब ,
जुल्मियों के
सर्द दिल में ,
क्या दया ? क्या हया ?
गया ,
सब कुछ गया ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 24
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (04-04-2015) को "दायरे यादों के" { चर्चा - 1937 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यवाद मयंक जी |
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