नहीं ये वो देश
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नहीं , नहीं ,
नहीं ये वो देश ,
जिसके स्वप्न लिये आये हम !
पागलों - से बिफरते तूफान ,
बर्बर बाढ़ , ख़ूनी जंगलों से ,
ओफ़ , भूखे , आग खाते ,
जानलेवा मरुथलों से ;
- आ गये जीवित यहाँ तक
सिर्फ़ था आवेश ,
जो पत्थर - सरीखे
हम गये न जम !
सामने परिदृश्य में
फूहड़ -छिछोरी दौड़ ,
पीछे छूटती जातीं ऋचाएँ ,
अहम् की सुविधा भरी हैं
धूर्त -कायर मंत्रणाएँ ;
- बेरहम , त्रासद , जरायम
औ ' बघिर परिवेश ,
सहते हम विवश ,
निरुपाय , अक्षम !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 42
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