Monday, February 29, 2016

'' हम जंगल के फूल '' - ( 1 ) दोहा , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - अँधेरा बढ़ रहा है '' में से लिया गया है -


( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )


सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867


Sunday, February 28, 2016

'' कारण हो तुम '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

Saturday, February 27, 2016

'' मेरे स्वप्न अहम् हारे '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -









हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
समय के धुँधलके में -
ममता के चेहरे सब धुँधलाते चले गये 
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
          देहरी से बाहर 
          उस मधुऋतु के आने की 
          छाया - भर छूट गयी ,
                  मन में ही घुट - घुट कर 
                  सुख की दो - चार बची 
                  साँसें भी टूट गयीं ,
और अन्त में 
मुझको आकर उपलब्ध हुई 
आँच बस व्यथाओं की ,
जिसको कितने अभाव दहकाते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
          अब भी 
          स्मृति है मुझको 
          थे कितने प्यारे क्षण ,
          कितने वे हिले - मिले 
          पर कितने न्यारे क्षण ,
                  जिनमें कुछ ऐसे भी 
                  सहयात्री मिले मुझे -
पहचाने होकर 
जो अनजाने बने रहे ,
अनजाने थे 
पर पहचाने - से भावों को दुहराते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
          तब से अब तक 
          बिछुड़ी दमयन्ती - सी सुबहें ,
          साँप - साँप करतीं - सी 
          उफ़ , सामन्ती घामें ,
                  रातों के रंग - राती 
                  बुझे लौह - सी शामें ,
आ - आ कर 
मेरे उस बीते का सुख ढाते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!
          अब मेरे सम्मुख है 
          नरभक्षी सूनापन ,
          शेष बचा  है केवल 
          टूटा तन ,
          हारा मन ,
                  मेरे सब स्वप्न 
                  अहम् हारे ,
हो नत - मस्तक 
अन्तहीन सीमा को अँधराते चले गये !
हरसिंगार सबके सब मुरझाते चले गये !!


                               - श्रीकृष्ण शर्मा 

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________________________
पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 69 , 70

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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867



                                            


                                           


Friday, February 26, 2016

'' प्यार '' - ( 8 ) , नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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सुनील कुमार शर्मा 
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Thursday, February 25, 2016

'' प्यार '' - 7 , नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Wednesday, February 24, 2016

'' घट रही हैं '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









           घट रही हैं 
           लोमहर्षक 
           रोज़ घटनाएँ। 

चोरियों की ,
लूट की 
तो बात मामूली ,
हो गयी अपहरित 
भोली औ ' सुघर जूली ,
           और 
           चौरस्ते सरेबाज़ार 
           हत्याएँ। 
लग रहा 
हम रह रहे हैं 
एक जंगल में ,
श्वान के स्वर तक 
जहाँ डूबे अमंगल में ,
           प्रश्न 
           कैसे नागपाशों से 
           निकल पाएँ। 


                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 54

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Tuesday, February 23, 2016

'' प्यार '' - ( 6 ) , नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Monday, February 22, 2016

'' प्यार '' - ( 5 ) , नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Sunday, February 21, 2016

'' प्यार '' - ( 4 ) नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Saturday, February 20, 2016

'' अय्यारों की बस्ती में '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -









हैं बींध रहे दुर्दिन , पर किसको लिखें पाती ?
चौहद्दियों सन्नाटा , हैं  व्यूह तिलिस्माती !!
अय्यारों की बस्ती ये ,
सच की शिनाख़्त मुश्किल ,
है इनमें कौन दर्दी ,
है इनमें कौन क़ातिल ?
एक आँख रो रही है , एक आँख मुस्कराती। 
चौहद्दियों सन्नाटा , है व्यूह तिलिस्माती !! 
इस आग के सफर में 
क्या चीखना चिल्लाना ?
बेरहम हवाओं में 
कुछ और सुलग जाना 
रिश्तों की देहरी पर , तामाशायी बाराती। 
चौहद्दियों सन्नाटा , है व्यूह तिलिस्माती !!
पहरे पर खड़े अन्धे ,
हैं भाँजते तलवारें ,
राजा के भाग्य में हैं ,
बस ख़ौफ , घुटन हारें ,
बंजर उगीं घटनाएँ , जंगल हुए शहराती। 
चौहद्दियों सन्नाटा , है व्यूह तिलिस्माती !!
है दर्द का समन्दर ,
हर साँस - साँस डूबी ,
फिर भी तो जिये जाती ,
ये ज़िन्दगी अजूबी ,
सौं साँसतों कबीरा की साखियाँ बतियातीं। 
चौहद्दियों सन्नाटा , है व्यूह तिलिस्माती !!


                                - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 22

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Friday, February 19, 2016

'' प्यार '' - ( 3 ) , नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है


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Thursday, February 18, 2016

'' ऐसा लगता है '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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सुनील कुमार शर्मा 
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Wednesday, February 17, 2016

'' हम सब तो आम हैं '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -









हम सब तो आम हैं ,
खास नहीं ,
अपना कोई इतिहास नहीं। 
           अपने हैं संग - साथ
           तकलीफें ,
           पीड़ा है , आँसू हैं 
           हैं चीखें ,
सपनों की 
हमको तलाश नहीं। 

हम सब तो आम हैं ,
खास नहीं ,
अपना कोई इतिहास नहीं। 
           भूख बहिना ,
           अभाव है भाई ,
           बाप है पेट ,
           गरीबी माई ,
ख्वाइशें बेवा ,
पर संकल्प अभी लाश नहीं। 

हम सब तो आम हैं ,
खास नहीं ,
अपना कोई इतिहास नहीं। 


                     - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 21

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Tuesday, February 16, 2016

'' मैं खड़ा हूँ हार कर '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -









भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?
सामने मेरे खड़ा 
चम्बल नदी - सा क्रुद्ध  भरका। 
                है कहाँ पितृव्य का आशीष वाला हाथ ,
                माँ की है कहाँ ममतामयी वह गोद ,
                जो दुख दर्द सहलाते कहाँ हैं अब 
                प्रिया के वे प्रियंका नैन ?
उफ़ , कहीं कोई नहीं ,
जो दे तनिक आश्वस्ति ,
                लेकिन देह के नीचे 
                अचानक एक ठण्डा और चिकना 
                साँप - सा सरका। 
                भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?
लालसाएँ / तितलियों के पंख - सी 
फेंकीं समय ने नोंच 
प्रेत - नख - तन और मन को 
दे रहे हैं विष - भरे व्रण / नोंच और खरोंच ,

                औ खड़ा मैं हार कर जैसे कि लम्बी जंग। 
                अब होकर अपाहिज इस तरह 
                जाऊँ , कहाँ जाऊँ 
                ओह , बर्बर और खूनी 
                व्याघ्र - जैसे दृस्टि से बच ?
दे सकेगी ज़िन्दगी 
इस मौत को कब तक भला चरका ?
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?


                           - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 20

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Monday, February 15, 2016

'' विलोम गति '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Sunday, February 14, 2016

'' असर '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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सुनील कुमार शर्मा 
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Saturday, February 13, 2016

'' कौन आता है '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -









कौन आता है , टिटहरी बोल ?

दूर तक आदम न आदमज़ात 
है पगवाट एकाकी ,
अहल्या सी पड़ी अकुलीन। 
          लाड़ली बरसात की 
          यह धार जोहड़ की 
           मुट्ठियों में रेत बंध कर 
           हुई क्षय - ग्रस्त - उद्गमहीन। 
इन अकेली और बीहड़ चुप्पियों की 
हर सतह पर हर गिरह को खोल 
कौन आता है , टिटहरी बोल ?

अड़ गयी हों कण्ठ में जैसे - शिलाएँ ,
बाँसवन में है हवा चुप 
और वंशी मूक। 
           ओह , इस खूँखार आदमखोर वहशी 
           मौन के धँसते हुए ये दाँत पैने ,
           तोड़ कर दो टूक। 
कौन इस आपात में तेरे सिवा है ,
जो गुँजाये साँस का यह खोल ?

कौन आता है , टिटहरी बोल ?


                        - श्रीकृष्ण शर्मा 

____________________
पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 19

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Friday, February 12, 2016

'' फरक्का हुआ '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Wednesday, February 10, 2016

'' अक्षरों के सेतु '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









छटपटाती भावनाएँ ,
चेतना - हत कामनाएँ ,
औ ' अपाहिज से पड़े संकल्प। 
घेर कर बैठे 
         फरेबी - स्वार्थी - लोलुप दरिन्दे 
         भेड़िये औ ' सर्प। 

भूख - निर्धनता - अभावों के 
विकट लाक्षागृहों में 
राख होता सूर्य। 
         चक्रव्यूहों में फँसी 
         यह ज़िन्दगी संघर्ष - रत है ,
         आत्म - रक्षा हेतु। 

पर 
कुचक्री सिन्धु के उस पार तक 
निश्चय रचूँगा ,
' अक्षरों के सेतु ' ।  


                     - श्रीकृष्ण शर्मा 

___________________
पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 85

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Tuesday, February 9, 2016

'' मत बात करो मुझसे '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Monday, February 8, 2016

'' तुम बिना '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Sunday, February 7, 2016

'' वह झिलमिल छवि '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Saturday, February 6, 2016

'' तूती की धुन कौन सुनेगा ? '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









            जीवन क्या है ?
            अखबारी है।
            लोकतंत्र की लाचारी है।

नक्कारों में तूती की धुन ,
सब बहरे हैं , कौन सुनेगा ?
अन्धों में काना राजा क्या ?
आँखों वाला शीश धुनेगा। 
            बहुमत का पलड़ा भरी है। 
            लोकतंत्र की लाचारी है।

घोटालों में घोटाले हैं ,
साज़िश में साज़िश के जाले ,
दरवाज़ों में दरवाज़े हैं ,
तालों पे ताले ही ताले। 
            सिर्फ़ तिलिस्मी अय्यारी है। 
            लोकतंत्र की लाचारी है।

            जीवन क्या है ?
            अखबारी है।
            लोकतंत्र की लाचारी है।


                             - श्रीकृष्ण शर्मा 

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_____________________
पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 64

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पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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Friday, February 5, 2016

'' आँसू '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









आँसू तो आँसू हैं ,
निकल ही पड़ते हैं। 

         वैसे ये 
         पानी हैं ,
         फिर भी ये मानी हैं ,
तुच्छ समझने पर ,
भीतर तक गड़ते हैं। 
         आँसू तो आँसू हैं ,
         निकल ही पड़ते हैं। 

         मोती हैं ,
         फूल हैं ,
         इन्द्रधनुष कहीं ,
         कहीं धूल हैं ,
दुःखों को सहते हैं ,
सुख से झगड़ते हैं 
         आँसू तो आँसू हैं ,
         निकल ही पड़ते हैं। 


                  - श्रीकृष्ण शर्मा 

( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 42

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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

Thursday, February 4, 2016

'' दूर अब भी '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Wednesday, February 3, 2016

'' सपने का क्या '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Tuesday, February 2, 2016

'' अच्छा '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील से '' लिया गया है -


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Monday, February 1, 2016

'' मँहगाई '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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