Tuesday, March 29, 2016

'' मृत्यु है चिर सुहागिनी '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -



( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )


सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

Wednesday, March 23, 2016

'' दुश्मनी '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
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Tuesday, March 22, 2016

होली की शुभ कामनाएँ |



सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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Monday, March 21, 2016

'' कब आओगे ? '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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Thursday, March 17, 2016

'' सृजन की नींव '' नामक मुक्तक , कवि श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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Saturday, March 12, 2016

'' मैंने चाहा '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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Friday, March 11, 2016

'' अक्षरों पर बन्दिशें हैं '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -










अक्षरों पर बन्दिशें हैं
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       अक्षरों पर बन्दिशें हैं ,
       शब्द पर पहरे ,
       गीत अब किस ठौर ठहरे ?

चुप्पियों का 
एक जंगल है ,
लग रहा 
सब कुछ अमंगल है ,
       सुन न पड़ता कुछ ,
       आवाजें कहीं जाकर 
       गड़ गयीं गहरे। 
       गीत अब किस ठौर ठहरे ?

घुट रही है 
कण्ठ में वाणी ,
किन्तु फूटेगी 
किसी ज्वालामुखी - सी 
पीर कल्याणी ,
       तब न जन के रहेंगे 
       यों दर्द में डूबे हुए 
       ये ज़र्द औ ' ख़ामोश चेहरे। 
       गीत अब किस ठौर ठहरे ?

अक्षरों पर बन्दिशें हैं ,
शब्द पर पहरे। 


                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 66 , 67

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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
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Thursday, March 10, 2016

'' स्नेह '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Wednesday, March 9, 2016

'' ज़िन्दगी है दाँव पर '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' में से लिया गया है -









       आँख में है 
       हर नमी के 
       त्रासदी !

दर्द का स्केल है : चेहरा ,
दुःखों की देहरी 
हर पाँव ठहरा ,
       बनी परवशता 
       सभी के बीच 
       चौहदी !
       आँखों में है ...

आदमी है एक मुट्ठी धूल ,
रंग - खुशबू - फूल 
खोंसे पल्लुओं में 
शूल ; 
       ज़िन्दगी है दाँव पर ,
       घेरे खड़े हैं 
       पारधी !
       आँखों में है ...

हादसों में गीत 
बनते बोल ,
चढ़े पशुओं  के बदन पर 
सभ्यता के खोल ;
       दलदली है ,
       किन्तु जादू की नदी है 
       ये सदी !
       आँख में है ...


                   - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 73  , 74

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पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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Tuesday, March 8, 2016

दोहा क्रमांक - 6 ( '' हम जंगल के फूल '' - नामक दोहा ) , , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -


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Monday, March 7, 2016

दोहा क्रमांक - 5 ( '' हम जंगल के फूल '' नामक दोहा ) , कवि स्व, श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -


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Sunday, March 6, 2016

'' साँसों को कब तक बहलाएँ '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -










'' साँसों को कब तक बहलाएँ ''
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आँगन की मुठ्ठी भर धूप गयी ,
सीला मन कैसे गरमायें हम ?

         दिन ने घी - सेंदुर के साँतिये बनाये थे 
         औ ' भींतों छापे थे हल्दी के थापे ,
         आश्वासन के वे रंगीन और चमकीले 
         चेहरे भी आ काली आँधी ने ढाँपे ,
सईं - साँझ सन्नाटा पसर गया ,
किस पर इस दृस्टि को टिकायें हम ?

         थाली - सी बजने की सिर्फ़ गूँज सुन पड़ती ,
         महराती आवाजें साँपिन की खायीं ,
         बैठे हैं सपनों को घेरे कुछ भाग्यहीन ,
         पर अलाव की गीली लकड़ी तक कड़ुवायी ,
गाँठ - गाँठ चिलकन से टूट रही ,
गठिया में कैसे अँगड़ाये हम ?

         सूर्य मरा , बैठी है रात किसी विधवा - सी ,
         मातमपुरसी करते कुत्ते भी रोते हैं ,
         कुहरे की पर्तों - पर्तों में से होकर 
         लाश ज़िन्दग़ी की सब सुबह तलक ढोते हैं ,
असुरक्षित औ ' त्रासद भरकों में ,
साँसों को कब तक बहलायें हम ?  


                       - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 51

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Saturday, March 5, 2016

'' तुम बिना '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -










तुम बिना
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मीत मन के 
गीत जैसे। 

        कल्पना कोमल 
        कि तुम लय से मधुर हो ,
        मीत , छवि के छन्द से भी 
        तुम सुघर हो ,
मन्द्र स्वर ये 
श्लोक निर्झर - नीर - जैसे। 
मीत मन के ...
        धूपिया स्वर्णाभ 
        तन फागुन सँजोये ,
        शब्द हरसिंगार 
        झरते गन्ध बोये ,
जगे होठों पर 
कमल के दीप जैसे 
मीत मन के ...
        तुम मिले तो 
        हुई केसर सृष्टि हर पग ,
        तुम गए तो 
        अन्धसागर हो गया जग ,
तुम बिना हम 
मीत सिर्फ अतीत जैसे। 

मीत मन के।   


                  - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 40

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Friday, March 4, 2016

दोहा क्रमांक - 4 ( '' हम जंगल के फूल '' - नामक दोहा ) , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -


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Thursday, March 3, 2016

'' हम जंगल के फूल '' नामक दोहा ( दोहा क्रमांक - 3 ) , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -


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Wednesday, March 2, 2016

'' हम जंगल के फूल '' नामक दोहा ( दोहा क्रमांक - 2 ) , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' में से लिया गया है -


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