एक देशद्रोही का आत्म - कथ्य
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शीश नहीं ,
हम तो बस सिर्फ़ हैं कबन्ध ।
अपना तो परिचय है
- जाफ़र - जयचन्द ।
खड़े हुए
काई पर पाँव धरे ,
बड़े हुए
मगर बँटे औ ' बिखरे ;
नाटक के पात्रों - सा
रखकर सम्बन्ध ।
अपना तो परिचय है
- जाफ़र - जयचन्द ।
स्वर्ण - कलश
हम पर हैं छेर पड़ी ,
जीवन - रस
में हम हैं विषखपड़ी ;
स्वार्थों से किया सदा
हमने अनुबन्ध ।
अपना तो परिचय है
- जाफ़र - जयचन्द ।
नदियों को
जब चाहा सोख लिया ,
सदियों को
बढ़ने से रोक दिया ;
सुनने में थे सदैव
हम ललित निबन्ध ।
अपना तो परिचय है
- जाफ़र - जयचन्द ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 35 , 36
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