Sunday, January 31, 2016

'' चाँदनी की देह '' नामक गीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के गीत संग्रह - '' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है -










चाँदनी की देह 
----------------
भोर का पीकर जहर अब चाँदनी की 
देह नीली पड़ रही है। 

टल गया है वह मुहूरत , जबकि पड़तीं 
भाँवरें कुण्ठित सुखों की
इसलिए ही चुप हुआ है झिल्लियों के घर 
पुरोहित मंत्र पढ़ता ;

क्या करे अभिनीत कोई और अभिनय 
जब किसी ने है गिरा दी ,
मधुर सपनों की सुघर रंगस्थली के 
सुखद दृश्यों पर यवनिका ;

घट गयी घटना यहाँ पर जो अचानक ,
है उसी की ओस साक्षी ,
और जिसकी याद करके साँस लम्बी 
अब लगीं चलने हवा की ;

रात के अपराध पर अब तारिकाएँ 
आत्महत्या कर रही हैं। 

भोर का पीकर जहर अब चाँदनी की 
देह नीली पड़ रही है।


                                - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर ''  ,  पृष्ठ - 25

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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

Saturday, January 30, 2016

'' जिनको भेजा '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









           जिनको भेजा 
           दर्द कहेंगे ,
           वे सब जा बैठे महलों में। 

अपने बीच 
रहे खोली में ,
फ़ाके थे केवल झोली में ,
बातों में 
वे कान कतरते ,
काने थे अन्धी टोली में ,
           बड़े - बड़ों के आगे - पीछे 
           रहते सेवा में ,
           टहलों में। 

बदल गया रँग 
खरबूजे सा ,
खरबूजों को देख - देखकर ,
सीख गये वे 
बिना पंख के उड़ना ,
           जैसे उड़े कबूतर ,
           दुग्गी से बढ़कर होती है ,
           अब उनकी गिनती दहलों में। 

बिछी जाजमों 
गादी बैठे ,
सुख - सुविधा पाँवों के नीचे ,
कौन मर रहा ,
कौन जी रहा ,
फ़िक्र न सबसे आँखें मींचे ,
           चालाकी , साज़िश , बेशर्मी ,
           उनकी चालों में ,
           पहलों में। 


                          - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 69 , 70

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Friday, January 29, 2016

'' सुन्दरता है '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Thursday, January 28, 2016

'' क्यों बेजार हो '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Wednesday, January 27, 2016

'' आँसू '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Tuesday, January 26, 2016

'' क्रान्ति '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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'' एक देशद्रोही का आत्म - कथ्य '' नामक नवगीत , स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है -









शीश नहीं ,
हम तो बस सिर्फ़ हैं कबन्ध। 
अपना तो परिचय है 
- जाफ़र - जयचन्द। 

खड़े हुए 
काई पर पाँव धरे ,
बड़े हुए 
मगर बँटे औ ' बिखरे ;

नाटक के पात्रों - सा 
रखकर सम्बन्ध। 
अपना तो परिचय है 
- जाफ़र - जयचन्द।

स्वर्ण - कलश 
पर हम हैं छेर पड़ी ,
जीवन - रस 
में हम हैं विषखपड़ी ;

स्वार्थों से किया सदा 
हमने अनुबन्ध। 
अपना तो परिचय है 
- जाफ़र - जयचन्द।

नदियों को 
जब चाहा सोख लिया ,
सदियों को 
बढ़ने से रोक दिया ;

सुनने में थे सदैव 
हम ललित निबन्ध। 
अपना तो परिचय है 
- जाफ़र - जयचन्द।


                  - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 37

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Monday, January 25, 2016

'' नहीं ये वो देश '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक नदी कोलाहल '' से लिया गया है -









नहीं , नहीं ,
नहीं ये वो देश ,
जिसके स्वप्न लिए आये हम !

पागलों - से बिफरते तूफान ,
बर्बर बाढ़ , ख़ूनी जंगलों से ,
ओफ़ , भूखे , आग खाते ,
जानलेवा मरुथलों से ;

- आ गये जीवित यहाँ तक 
सिर्फ़ था आवेश ,
जो पत्थर - सरीखे 
हम गये न जम !

सामने परिदृश्य में 
फूहड़ - छिछोरी दौड़ ,
पीछे छूटती जातीं ऋचाएँ ,
अहम् की सुविधा भरी हैं 
धूर्त - कायर मंत्रणाएँ ;

- बेरहम , त्रासद , जरायम 
औ ' बधिर परिवेश ,
सहते हम विवश ,
निरुपाय , अक्षम !


                   - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 42

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Saturday, January 23, 2016

'' उजड़ी राह चल रहा '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -









गुनहगार है चाँद , कि जिसने स्वप्न मुझे दे डाले 
उससे ज्यादा गुनहगार मैं , लगा न पाया ताले। 

गीत बड़े ही चोर कि मन की गाँठ खोल लेते हैं 
गोपन रख पाते न प्राण में ,सभी बोल देते हैं ,
मेरी कमजोरी के हैं ये लगे हुए परनाले ,
करें उजागर कलुष कि मैंने ऐसे दीपक वाले। 

गुनहगार है चाँद , कि जिसने स्वप्न मुझे दे डाले ,
उससे ज्यादा गुनहगार मैं , लगा न पाया ताले। 

यह कलमुँही रात फिर  कैसे बन ठन करके आयी ,
साथ चाँदनी के फिर लौटी गयी हुई परछाँई ,
अन्धी बहरी नींद बुन रही इन्द्रधनुष के जाले ,
उलझ गये हैं छाया छवि में मन के साये काले। 

गुनहगार है चाँद , कि जिसने स्वप्न मुझे दे डाले 
उससे ज्यादा गुनहगार मैं , लगा न पाया ताले। 

दूर पहाड़ी पर वह बादल अब थक कर सोता है ,
सन्नाटे में कोई आवारा कुत्ता रोता है ,
उचट रहा जी , कोई देगा क्या हाथों के झाले ?
उजड़ी राह चल रहा , कोई कब तक भला सँभाले ?

गुनहगार है चाँद , कि जिसने स्वप्न मुझे दे डाले 
उससे ज्यादा गुनहगार मैं , लगा न पाया ताले। 


                                      - श्रीकृष्ण शर्मा 


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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 36


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Friday, January 22, 2016

'' साकी से '' नामक मुक्तक , कवि श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Wednesday, January 20, 2016

'' फिर भी हम ज़िन्दा हैं '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Tuesday, January 19, 2016

'' चलता दिन थमा '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









        उजियारा गिरा ,
        थका - हारा । 

चलता दिन थमा ,
हवा सुट्ट खड़ी ,
भुच्च अँधेरे की 
वह धौल पड़ी ,
        छूट गया ,
        हाथों से पारा । 
उजियारा गिरा ,
थका हारा । 

किरचों - किरचों 
चुप्पी बिखरी ,
शातिर सन्नाटे की 
ठकुराइस पसरी ,
        पर ढिबरी धुँधुआती,
        आँखों ले भिनसारा । 
 उजियारा गिरा ,
थका हारा । 


                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 40

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Monday, January 18, 2016

'' जिज्ञासा '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -

 
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'' क्यों '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Saturday, January 16, 2016

'' मावट की बारिश होने पर '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -

( कहते हैं ' सावन की झरन , भादौं की भरन ', किन्तु भादौं सूखी गयी । पानी नहीं बरसा । परन्तु वर्ष के अन्तिम दिन ३१ दिसम्बर २००० की रात में अच्छी वर्षा हुई । फलस्वरूप यह रचना लिखी गई )

आज हवा कुछ सीली - सी है ,
धरती गीली है ,
लगा 
विदा के वक्त 
वर्ष की आँख पनीली है । 
          कुछ दिन पहले 
          जेठ लिये था 
          हाथों जलती हुई लुकाठी ,
                   तार - तार की 
                   छाँह गदीली 
                   मार - मार किरनों की सौटी ,
लगा 
रेत से बतियाने में ,
भादौं भूली 
चूल्हे रक्खी हुई पतीली है । 
          देखा मैंने
          शाम - शाम को 
          आसमान में कुछ कपास थी ,
                   पर उम्मीद न थी ,
                   पानी से ,
                   जीवित छन्दों के छपास की ,
सुबह हुई 
साँसें गन्धायीं 
लगा तृषित माटी ने 
रात वारुणी पी ली है । 


                       - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 27

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Friday, January 15, 2016

'' आदमी '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Thursday, January 14, 2016

'' प्यार '' - २ नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Wednesday, January 13, 2016

मकर संक्रांति पर '' सहारा '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -





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'' लौह द्वार '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Monday, January 11, 2016

'' दुपहर सर्द खड़ी '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत - संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -









           बेहद ठण्डा मौसम । 

           सुबह शबनमी ,
           दिन है कुहरिल 
           सन्ध्या की चौपालों बैठी 
           रातों की महफिल ,
लेकिन रात ,
पुरानी इमली पर भूतों का वहम । 
           बेहद ठण्डा मौसम । 

           धूप पोर भर ,
           तरुण सियाही ,
           दुपहर सर्द खड़ी 
           सूरज की देती नहीं गवाही ,
किरनें भरतीं 
ध्रुव प्रदेश के रिक्त पड़े कौलम । 
           बेहद ठण्डा मौसम । 

           हवा सुई हो गयी 
           ठिठुर कर ,
           फैल गये हाशिये शीत के 
           सारी काया पर ,
लगता जैसे 
किसी फ्रीज में बन्द रह गये हम । 
           बेहद ठण्डा मौसम । 


                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 32

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Sunday, January 10, 2016

'' जन - प्रतिनिधि '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक - संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Saturday, January 9, 2016

'' दर्द क्यों बोये ? '' नामक नवगीत , कवि स्व, श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









आस्था की बाँसुरी पर स्वर सँजोये ,
बन्धु , तुमने दर्द क्यों बोये ?

          भिगोये किस निराशा के चरण तुमने ?
          वरण तुमने हताशा का किया है क्यों ?
          थके औ ' लड़खड़ाते पग , झुका मस्तक ,
          पराजय को किया है क्यों नमन तुमने ?

न पहले सर्ग का प्रारम्भ हो पाया ,
सहज आवेग वर्णों में न उतराया । 
वसन्तों - पतझरों से भरे जीवन का ,
सभी रँग - गंध - अनुभव रहा अनगाया । 

          मगर तुम मंगलाचरणी पदों के ही ,
          निरर्थक और ठन्डे स्वरों में खोये !
          बन्धु , तुमने दर्द क्यों बोये ,
          आस्था की बाँसुरी पर स्वर सँजोये ?


                              - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 39

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Friday, January 8, 2016

'' अपना समझ के '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Thursday, January 7, 2016

'' मुनादी '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









चौराहों पर हुई मुनादी -
बच न सकेंगे अब अपराधी । 
खुश थी रैयत सीधी - सादी । । 

सब कहते - राजा है अच्छा ,
उसे दिया है कुछ ने गच्चा ,
अब करनी सब भरनी होगी ,
वैतरिणी तो तरनी होगी ;
        बोलो - कब तक बच पायेगी ,
        राजा सम्मुख पड़ कर प्यादी । । 
        चौराहों पर हुई मुनादी ..... 

लेकिन राजा बड़ा घाघ था ,
शहद चुआता हुआ नाग था ,
कहता था कुछ , कुछ करता था ,
पर जन - जागृति से डरता था ;
        कोई सरकश सिर न उठाये ,
        संगीनों से खबर छपा दी।।
        चौराहों पर हुई मुनादी ..... 

सरगर्मी से नगर भर गया ,
खतरा घर - घर में पसर गया ,
पतझर में जंगल के अन्दर 
जैसे कोई आग धर गया ;
        सबके चेहरों खौफ लिख गयी ,
        दहशत की वह काली आँधी । । 
        चौराहों पर हुई मुनादी ..... 

चारों तरफ तना अँधियारा ,
लगता है उजियारा हारा ,
ढोल - ढमाकों की ढम्मक - ढम 
चलता है राजा का गारा ;
        हाँके में कसती जाती है ,
        कुछ नव - सिंहों की आज़ादी । । 
चौराहों पर हुई मुनादी -
बच न सकेंगे अब अपराधी । 
खुश थी रैयत सीधी - सादी । । 


                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

( कृपया इस नवगीत को  पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है | धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 79 , 80

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सुनील कुमार शर्मा  
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512

फोन नम्बर - 9414771867



Wednesday, January 6, 2016

'' अँग्रेजों के वंशज '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -



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पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
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Tuesday, January 5, 2016

'' ज़रूरी '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -




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पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
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Monday, January 4, 2016

'' प्रलयंकर ने तीसरी आँख खोली '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









( सन्दर्भ : 22 मई 1997 को प्रातः 4.20 पर जबलपुर में आया भूकम्प )

थी आधी रात ढली , सहसा कोहराम मचा । 
शिव ने रेवा तट पर आ ताण्डव नृत्य रचा । । 
           पग - आघातों से ये धरती काँपी - डोली । 
           प्रलयंकर ने अपनी तीसरी आँख खोली । । 
भूगर्भ गड़गड़ाहट धड़ - धड़ से भरा हुआ । 
आतंक और भय से हर प्राणी भरा हुआ । । 
           धरती की छाती फटी कि पत्थर तक पिघले । 
           अनगिनत प्रसिद्ध ठिये इस दानव ने निगले । । 
ताण्डव में दीवारें दरकीं , घर भग्न हुए । 
कुछ बचे हुए आहत कुछ मृत्यु - निमग्न हुए । । 
           जो अपनों से बिछुड़े वे अपनों को रोते । 
           अपनों का शोक , सिर्फ क्या अपने ही ढोते ?
उफ़ , विधना , ये विनाश की कैसी लीला है ?
मानव - कर्मों का दण्ड दुखद - दर्दीला है । । 
           ऐसी विपदा में अपने से बाहर आओ । 
           बुद्धि से काम लो , जन - सेवा में जुट जाओ । । 


                                            - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 36

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Sunday, January 3, 2016

'' प्यार '' - १ नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में '' से लिया गया है -


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Saturday, January 2, 2016

'' स्वर उछाल कर कहें '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?

रोज - रोज की वह ही बेमानी दिनचर्या ,
वही - वही जड़े हुए दृश्य और तस्वीरें ,
वही - वही है चुभन करौंदों के काँटों की ,
कमोबेश वही - वही नाजायज़ जंजीरें ,
            पथरीली भीड़ की निरन्तरता में चुकते ,
            कैसे हम संवादी स्वर उछाल कर कहें ?
            मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
            कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?

उम्र बढ़ रही जैसे - जैसे इस पोथी की ,
कागज़ के पन्नों का जीवन काम हो रहा ,
कोयलों की अनसूझी औ ' गीली खानों में ,
जल - जल कर मेहनतकश जीवन तम ढो रहा ,
            सूर्यमुखी जीवित क्षण चौरस्ते दफना कर ,
            कैसे हम जश्न के मज़ाक को सहें ?
            मौसम की असामान्य शर्तों से भौचक्के ,
            कैसे हम वक्त के प्रवाह में बहें ?


                                         - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 45


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Friday, January 1, 2016

'' दिवा स्वप्न '' नामक मुक्तक , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के मुक्तक संग्रह - '' चाँद झील में से लिया गया है -



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