जंगल में खो गया हूँ मैं !
--------------------------
भीड़ ही भीड़ है ,
इस भीड़ में कहाँ हूँ मैं ?
राह दिखती नहीं ,
जंगल है एक मनुष्यों का ,
सच कहूँ तो इसी
जंगल में खो गया हूँ मैं !
एक आवाज़ भी
लगती नहीं पहचानी ,
क्या पता कौन - सा
ये देता इम्तिहाँ हूँ मैं ?
एक मुद्दत हुई
सपना नहीं आया कोई ,
साँस के इस सफ़र से
इस क़दर हैराँ हूँ मैं !
आपका रहमो -करम
रक्खे है ज़िन्दा मुझको ,
वरना लगता रहा ज्यों
मौत के दरम्याँ हूँ मैं !
- श्रीकृष्ण शर्मा
____________________
पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल " , पृष्ठ - 55
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
No comments:
Post a Comment