तेरे बिन ओ मीता !
---------------------
आँखों में रात गयी ,
पथ तकते दिन बीता ,
तेरे बिन ओ मीता !
अंधकार के घर से
सुबह निकल आयी है ,
पूरब ने कंधों पर
रोशनी उठाई है ;
किन्तु दिखी नहीं कहीं
सपनों की परिणीता !
इन्द्रधनुष थे लेकिन
इंतज़ार में टूटे ,
कर डाले सारे सच
उदासियों ने झूठे ;
शहर सभी सूना है ,
भरा - भरा मन रीता !
- श्रीकृष्ण शर्मा
____________________
पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 52
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2015) को 'तिलिस्म छुअन का..' (चर्चा अंक-1958) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यवाद मयंक जी |
ReplyDeleteधन्यवाद मयंक जी |
ReplyDelete