Saturday, April 25, 2015

तेरे बिन ओ मीता !










      तेरे बिन ओ मीता !
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        आँखों में रात गयी ,
        पथ तकते दिन बीता ,
        तेरे बिन ओ मीता !

        अंधकार के घर से 
        सुबह निकल आयी है ,
        पूरब ने कंधों पर 
        रोशनी उठाई है ;

        किन्तु दिखी नहीं कहीं 
        सपनों की परिणीता !

        इन्द्रधनुष थे लेकिन 
        इंतज़ार में टूटे ,
        कर डाले सारे सच 
        उदासियों ने झूठे ;

        शहर सभी सूना है ,
        भरा - भरा मन रीता !

                      - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 52












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shrikrishnasharma.wordpress.com

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2015) को 'तिलिस्म छुअन का..' (चर्चा अंक-1958) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. धन्यवाद मयंक जी |

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  3. धन्यवाद मयंक जी |

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