ज़िन्दगी में क्या घटा ऐसा ?
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हादसे होते रहे ,
सोते रहे हम ,
था न हमको दर्द
या ग़म !
जागते तो
कुछ कसक होती ,
आँख उगते
दर्द के मोती ;
मूर्त होता
इन क्षणों मातम !
ज़िन्दगी में
क्या घटा ऐसा ?
बढ़ी खुदगर्ज़ी ,
हुआ है अहम पैसा ;
और बौना
हो चला आदम ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 26
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