निशि - दिन अब धृतराष्ट्र व गांधारी
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तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!
सिर पर उजियारे की पगड़ी
बाँधे रहा दिया ,
तम अनियारे रखा , देह में
जब तब रक्त जिया ;
काल - रात्रि में ज्योति - केतु घर - घर फहराये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!
पर जब भी शातिर अँधियारा
पसरा धरती पर ,
नक्षत्रों का बोझ लिये
बेमानी है अम्बर ;
मावस ने दहशत के ऐसे व्यूह बनाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!
अब न दीवाली , निशि - दिन अब
धृतराष्ट्र व गांधारी ,
और हस्तिनापुर में है
दुर्योधन की पारी ;
जिसकी ख़ातिर भीष्म - कर्ण ने शस्त्र उठाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!
बचकर रहना शकुनी की तुम
घातक चालों से ,
अभिमन्यु के बधिकों औ '
लाक्षाग्रह वालों से ;
मारो ,ज्यों न भीम से अन्यायी बच पाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल '' , पृष्ठ - 44
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