प्रतीक्षा में
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आती औ 'जाती हर छाया के साथ -साथ
दृष्टि गई खिड़की के पार
बार -बार
मगर
तुम मुझे मिले न बंधु ,
-कोई वह और था !
गुजर रही हैं ध्वनियाँ
जो भी इन राहों से ,
उनका इन कानों से
परिचय ही नहीं हुआ ।
मेरे इस आँगन से
होकर जो साँस चली ,
आह ,उष्ण ममता से
उसने मैं नहीं छुआ ।
-दृष्टि सब अजनबी हैं ,
- ध्वनि सब अपरिचित हैं ,
- साँस सब परायी हैं ,
ओ मेरे प्यार !
मैं व्यतीत हुआ व्यर्थ हाय ,
बून्द -बून्द रीत गया ,
प्राण ,
इस प्रतीक्षा में ।
(१९६६) कवि श्रीकृष्ण शर्मा
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आती औ 'जाती हर छाया के साथ -साथ
दृष्टि गई खिड़की के पार
बार -बार
मगर
तुम मुझे मिले न बंधु ,
-कोई वह और था !
गुजर रही हैं ध्वनियाँ
जो भी इन राहों से ,
उनका इन कानों से
परिचय ही नहीं हुआ ।
मेरे इस आँगन से
होकर जो साँस चली ,
आह ,उष्ण ममता से
उसने मैं नहीं छुआ ।
-दृष्टि सब अजनबी हैं ,
- ध्वनि सब अपरिचित हैं ,
- साँस सब परायी हैं ,
ओ मेरे प्यार !
मैं व्यतीत हुआ व्यर्थ हाय ,
बून्द -बून्द रीत गया ,
प्राण ,
इस प्रतीक्षा में ।
(१९६६) कवि श्रीकृष्ण शर्मा
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