समय
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पता नहीं चलता
समय की मौजूदगी का
जब मौजूद होते हैं अपने सब ,
-बतियाते हैं या
किन्हीं भीतरी
या बाहरी
सुगंधों में खोते हैं ।
लेकिन भावुक नहीं होता समय ।
पूरी मुस्तैदी से -
खोलता रहता है वह हर गाँठ
-तोड़ता रहता है हर कण ।
… और
अचानक
कितना स्थिर हो जाता है ,
-हर पल
- हर क्षण ?
---------- -कवि श्रीकृष्ण शर्मा
(1968) पुस्तक -''अक्षरों के सेतु '' पृष्ठ - 39
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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पता नहीं चलता
समय की मौजूदगी का
जब मौजूद होते हैं अपने सब ,
-बतियाते हैं या
किन्हीं भीतरी
या बाहरी
सुगंधों में खोते हैं ।
लेकिन भावुक नहीं होता समय ।
पूरी मुस्तैदी से -
खोलता रहता है वह हर गाँठ
-तोड़ता रहता है हर कण ।
… और
अचानक
कितना स्थिर हो जाता है ,
-हर पल
- हर क्षण ?
---------- -कवि श्रीकृष्ण शर्मा
(1968) पुस्तक -''अक्षरों के सेतु '' पृष्ठ - 39
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