नहीं मरूँगा मैं
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क्या हुआ ?
जो ज़िन्दगी जीना नहीं आया ,
मगर मैं मौत से भी तो न घबराया ।
नहीं
मैंने नहीं पाया
प्रशिक्षण युद्ध - कौशल का
मगर भागा नहीं मैदान से दहशतज़दा होकर ,
नहीं आतंक के आगे समर्पण ही किया मैंने ।
दिया मैंने स्वयं को आँसुओं का अर्ध्य
अपने रक्त से मैंने किया अभिषेक ,
निरन्तर विष पिया मैंने
नरक की यातनाओं का ।
मगर हरा नहीं लड़ता रहा
क्रमशः सभी कटते गये ये अंग ,लेकिन
जंग में जीवित बचा हूँ मैं ।
बचा हूँ मैं
बचाये हूँ अभी तक आग
बुझते किसी कोने में ।
किसी हारे हुए
संघर्ष से ऊबे हुए
किसी ठण्डाते हुए मन में ,
की जब तक रोप पाऊँगा नहीं ये पौधा ,
- नहीं तब तक मरूँगा मैं ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1975 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 87
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क्या हुआ ?
जो ज़िन्दगी जीना नहीं आया ,
मगर मैं मौत से भी तो न घबराया ।
नहीं
मैंने नहीं पाया
प्रशिक्षण युद्ध - कौशल का
मगर भागा नहीं मैदान से दहशतज़दा होकर ,
नहीं आतंक के आगे समर्पण ही किया मैंने ।
दिया मैंने स्वयं को आँसुओं का अर्ध्य
अपने रक्त से मैंने किया अभिषेक ,
निरन्तर विष पिया मैंने
नरक की यातनाओं का ।
मगर हरा नहीं लड़ता रहा
क्रमशः सभी कटते गये ये अंग ,लेकिन
जंग में जीवित बचा हूँ मैं ।
बचा हूँ मैं
बचाये हूँ अभी तक आग
बुझते किसी कोने में ।
किसी हारे हुए
संघर्ष से ऊबे हुए
किसी ठण्डाते हुए मन में ,
की जब तक रोप पाऊँगा नहीं ये पौधा ,
- नहीं तब तक मरूँगा मैं ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1975 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 87
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