लम्बे समय बाद बिटिया को देख कर
---------------------------------------
एक सहज सुख से आँखें भर आयीं ,
जब लम्बे अरसे बाद
तू घर आयी ।
देख कर तुझे ,
मन
इतना तन्मय था
इतना चुप था
और इतना नम था
जैसे - सैकड़ों निर्झरों का उद्गम था ।
इतने दिनों बाद
तुझे देख कर लगा ,जैसे -
बन गया हो जेठ का आकाश
आषाढ़ी बादलों का सपना
अथवा
आत्मजात दूर्वा से
हो गई हो काष्ठ - धरती
एक जीवित अल्पना ।
(१९७९) अक्षरोँ के सेतु /२८
कवि श्रीकृष्ण शर्मा
---------------------------------------
एक सहज सुख से आँखें भर आयीं ,
जब लम्बे अरसे बाद
तू घर आयी ।
देख कर तुझे ,
मन
इतना तन्मय था
इतना चुप था
और इतना नम था
जैसे - सैकड़ों निर्झरों का उद्गम था ।
इतने दिनों बाद
तुझे देख कर लगा ,जैसे -
बन गया हो जेठ का आकाश
आषाढ़ी बादलों का सपना
अथवा
आत्मजात दूर्वा से
हो गई हो काष्ठ - धरती
एक जीवित अल्पना ।
(१९७९) अक्षरोँ के सेतु /२८
कवि श्रीकृष्ण शर्मा
No comments:
Post a Comment