अभिमन्यु की हत्या
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छेदकर
जैसे - कलेजे में
गगन के कील
हत्यारे - सरीखा है खड़ा
दुर्दम्य - ऊँचा ताड़ ,
बौने पेड़ ठठ - के - ठठ
अवस - निरुपाय ।
जैसे -
द्रौपदी कौरव - सभा में
लाज को रोती ,
दुःशासन पाशविकता से लगाता क़हक़हे ,
सहमा हुआ स्वर सुन नहीं पड़ता
निरर्थक शोर में ।
आसनों धृतराष्ट्र की औलाद
बैठी भोगती सुख और सुविधा
पाण्डवों का हक़ ।
और
रच दुष्चक्र ,
जन - जन को रुपहली ज़िन्दगी से काट
निर्वासन - अवधि को काटने
भेजा किसी अज्ञात पथ पर
और
मँहगाई - अभावों का बना कर व्यूह ,
मार डाला
चेतनायुत - ऊर्जस्वित अभिमन्यु ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1973 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 80
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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छेदकर
जैसे - कलेजे में
गगन के कील
हत्यारे - सरीखा है खड़ा
दुर्दम्य - ऊँचा ताड़ ,
बौने पेड़ ठठ - के - ठठ
अवस - निरुपाय ।
जैसे -
द्रौपदी कौरव - सभा में
लाज को रोती ,
दुःशासन पाशविकता से लगाता क़हक़हे ,
सहमा हुआ स्वर सुन नहीं पड़ता
निरर्थक शोर में ।
आसनों धृतराष्ट्र की औलाद
बैठी भोगती सुख और सुविधा
पाण्डवों का हक़ ।
और
रच दुष्चक्र ,
जन - जन को रुपहली ज़िन्दगी से काट
निर्वासन - अवधि को काटने
भेजा किसी अज्ञात पथ पर
और
मँहगाई - अभावों का बना कर व्यूह ,
मार डाला
चेतनायुत - ऊर्जस्वित अभिमन्यु ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1973 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 80
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