अक्षरों के सेतु
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छटपटाती भावनाएँ ,
चेतना - हत कामनाएँ ,
औ ' अपाहिज - से पड़े संकल्प ।
घेर कर बैठे
फरेबी - स्वर्थी - लोलुप - दरिन्दे
भेड़िये औ ' सर्प ।
भूख - निर्धनता - अभावों के
विकट लक्षागृहों में
राख होता सूर्य ।
चक्रव्यूहों में फँसी
यह ज़िंदगी संघर्ष - रत है ,
आत्म - रक्षा हेतु ।
पर
कुचक्री सिन्धु के उस पार तक
निश्चय रचूँगा ,
अक्षरों के सेतु ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1974 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 95
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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छटपटाती भावनाएँ ,
चेतना - हत कामनाएँ ,
औ ' अपाहिज - से पड़े संकल्प ।
घेर कर बैठे
फरेबी - स्वर्थी - लोलुप - दरिन्दे
भेड़िये औ ' सर्प ।
भूख - निर्धनता - अभावों के
विकट लक्षागृहों में
राख होता सूर्य ।
चक्रव्यूहों में फँसी
यह ज़िंदगी संघर्ष - रत है ,
आत्म - रक्षा हेतु ।
पर
कुचक्री सिन्धु के उस पार तक
निश्चय रचूँगा ,
अक्षरों के सेतु ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1974 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 95
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