सम्भावनाओं के नागपाश
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दिन की देहरी पर बैठी
धूप के पास आये थे कभी
स्वर्ण - हंस ।
और
क्रान्तिधर्मा चेहरे
चमकाये थे सूरज ने
रोशनी से ।
लेकिन
भर दोपहर
बड़ी ही चालाकी से
खुदगर्ज़ सुविधा - भोगियों ने
काट दिये उनके डैने ।
और जकड कर
रुपहली सम्भावनाओं के नागपाश में
छोड़ दिया है उन्हें
रात से घिरे
अन्धे यातना - शिवरों में
सिर्फ अंधकार बटोरने के लिए ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1973 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 77
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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दिन की देहरी पर बैठी
धूप के पास आये थे कभी
स्वर्ण - हंस ।
और
क्रान्तिधर्मा चेहरे
चमकाये थे सूरज ने
रोशनी से ।
लेकिन
भर दोपहर
बड़ी ही चालाकी से
खुदगर्ज़ सुविधा - भोगियों ने
काट दिये उनके डैने ।
और जकड कर
रुपहली सम्भावनाओं के नागपाश में
छोड़ दिया है उन्हें
रात से घिरे
अन्धे यातना - शिवरों में
सिर्फ अंधकार बटोरने के लिए ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1973 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 77
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