अम्मा के प्रति
---------------------
आज भी
याद है मुझे ,
सरसों के फूल - ही - फूल थे
आँखों में तुम्हारी ।
मैं
जब - जब देखता
पाता तुम्हें -
बड़ी ममता और प्यार से
जोड़ - जोड़ कर रचते हुए
एक - एक अक्षर
बसंत को
।
इसी तरह
पल -छिन - दिन - मास गये
बरसों के ।
और आँखों में खुबते
उस फागुनी वर्ण -विन्यास को ,
एक -एक कर मिटाता चला गया
अपनी अंगुलियों के निर्मम पोरों से
पतझर ,बनने से पूर्व
एक पूर्ण कविता ।
… और मैं
अ - भागा देखता रहा
"अस -हाय " ।
---------------
(१९६५) अक्षरों के सेतु /२९
कवि श्रीकृष्णशर्मा
---------------------
आज भी
याद है मुझे ,
सरसों के फूल - ही - फूल थे
आँखों में तुम्हारी ।
मैं
जब - जब देखता
पाता तुम्हें -
बड़ी ममता और प्यार से
जोड़ - जोड़ कर रचते हुए
एक - एक अक्षर
बसंत को
।
इसी तरह
पल -छिन - दिन - मास गये
बरसों के ।
और आँखों में खुबते
उस फागुनी वर्ण -विन्यास को ,
एक -एक कर मिटाता चला गया
अपनी अंगुलियों के निर्मम पोरों से
पतझर ,बनने से पूर्व
एक पूर्ण कविता ।
… और मैं
अ - भागा देखता रहा
"अस -हाय " ।
---------------
(१९६५) अक्षरों के सेतु /२९
कवि श्रीकृष्णशर्मा
No comments:
Post a Comment