चलते हुए अँधेरे में
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चलते हुए अँधेरे में
ठोकर लगी थी अचानक
और निकल आया था अँगूठे से ख़ून
जो बहता रहा था देर तक
और
गिर - गिर कर ज़मीन में
जज्ब हो गया था
- यों ही बेकार ।
किन्तु दर्द अब भी है ।
कौंध जाता है तभी
अचानक वह लहू
आँखों में ,
उजालों से भरता हुआ
- शहीदों का ।
सचमुच , लहू
और लहू के पीछे छिपा
वह जज्बा ही बकमाल होता है
- जो बदल देता है रंगत
और असर
ख़ून का ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1975 ) , पुस्तक - '' अक्षरों के सेतु '' / पृष्ठ - 86
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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चलते हुए अँधेरे में
ठोकर लगी थी अचानक
और निकल आया था अँगूठे से ख़ून
जो बहता रहा था देर तक
और
गिर - गिर कर ज़मीन में
जज्ब हो गया था
- यों ही बेकार ।
किन्तु दर्द अब भी है ।
कौंध जाता है तभी
अचानक वह लहू
आँखों में ,
उजालों से भरता हुआ
- शहीदों का ।
सचमुच , लहू
और लहू के पीछे छिपा
वह जज्बा ही बकमाल होता है
- जो बदल देता है रंगत
और असर
ख़ून का ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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