( 1 )
रहे रात भर खोजते , हम सपनों के गाँव |
( 2 )
संग - साथ थे जो कभी , बन लंगोटिया यार |
( 3 )
देख रहा अब भी हमें , वह सपनीला चाँद |
( 4 )
मिले हमें भी राह में , प्यार भरे कुछ ठौर |
( 5 )
रात बीतती जा रही , अँधियारे के तीर |
( 6 )
लगता है रणक्षेत्र है , गंगा - जमुन दोआब |
( शेष भाग - 2 पर )
- श्रीकृष्ण शर्मा
_______________________
पुस्तक - '' मेरी छोटी आँजुरी '' , पृष्ठ - 37
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
No comments:
Post a Comment