मेरे प्यासे प्राण भटकते ।
नभ में काले मेघ घुमड़ते ,
निर्झर - सरिता - सिंधु उमड़ते ,
पर्वत से बहता सोता है ,
मरुथल में भी जल होता है ;
पर मैं हूँ वह एक अभागा
अग्नि - पंथ में ही जो जागा ;
शीतलता की खातिर जिसके
बूँद - बूँद में प्राण अटकते ।
मेरे प्यासे प्राण भटकते ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 19
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