आ रही अम्माँ तुम्हारी याद वह ममता । ।
जिन्दगी के दर्द में भीगा तुम्हारा स्नेह ,
दुखों का दरपन तुम्हारी झुर्रियां औ ' देह ,
देख हमको झलकता बुझते दृगों में नूर ,
तुम रहीं संजीवनी , आग्नेय दिन थे क्रूर ;
हम हँसें , तुम अश्रु पी बोती रही थीं हास ,
तम सहा खुद , मिले हमको ज्योति का आकाश ;
और अन्तिम साँस तक खट कर धुँआ होते ,
होंठ पर थीं बस दुआएँ, कह न करुण कथा !
आ रही अम्माँ तुम्हारी याद वह ममता । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 16
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