( 1 )
मोमबतियों की तरह , जल - जल कर निःशब्द ।
उजियाला देना रहा , कवियों का प्रारब्ध । ।
( 2 )
खड़ा मृत्यु के द्वार पर , अपना सीना तान ।
नित मर कर भी रच रहा , वह जीवन के गान । |
( 3 )
आँसू सबकी आँख के , सबके मन की पीर |
( 4 )
उठा - उठा कर कलम से , रक्खे कागज - मध्य |
वर्षों जो गोपन रहा , मन में मेरे मीत |
उठती मन में हूक जब , अकल - बकल हो चित्त |
( 7 )
लिखना यदि होता सरल क्यों जाते वे छोड़ |
( शेष भाग - २ में )
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' मेरी छोटी आँजुरी '' , पृष्ठ - 34
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