Thursday, July 16, 2015

पुस्तक ( गीत संग्रह ) - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गया गीत - '' स्वर गीले हैं ''









अभी गीत के स्वर गीले हैं । । 

अभी प्रीति के बंधन भी तो 
लगता है ढीले - ढीले हैं । 
अभी गीत के स्वर गीले हैं । । 

अभी टीस खामोश नहीं है ,
बुझे हुए प्राणों में सुधि की 
चिनगी भी बेहोश नहीं है ;

दृग में अभी विषाद भरा है ,
सच मनो , उस दिन का अब भी 
मेरे दिल का घाव हरा है ;

आँखों की शबनम के भी तो 
रंग अभी नील - पीले हैं । 
अभी गीत के स्वर गीले हैं । । 

                           - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन ''  ,  पृष्ठ - 17












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