अभी गीत के स्वर गीले हैं । ।
अभी प्रीति के बंधन भी तो
लगता है ढीले - ढीले हैं ।
अभी गीत के स्वर गीले हैं । ।
अभी टीस खामोश नहीं है ,
बुझे हुए प्राणों में सुधि की
चिनगी भी बेहोश नहीं है ;
दृग में अभी विषाद भरा है ,
सच मनो , उस दिन का अब भी
मेरे दिल का घाव हरा है ;
आँखों की शबनम के भी तो
रंग अभी नील - पीले हैं ।
अभी गीत के स्वर गीले हैं । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 17
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