मैनें सपने नहीं सजाये ! !
जो भी हुआ , हुआ अनजाने ,
आँसूं जो आँखों में आये !
मैनें सपने नहीं सजाये ! !
जहाँ उदास सुबह बैठी थी ,
मैं जन्मा था उस आँगन में ,
किलकारी भरते अभाव थे ,
जहाँ ग़रीबी के दामन में ;
कभी नहीं मन में आया था ,
कोई इस तम को उजराये ,
पर मैं बिखर गया जब तुमने ,
मेरे रिसते व्रण सहलाये !
मैनें सपने नहीं सजाये ! !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 23
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