भाग - १ का शेष -
( 6 )
दी अशक्त को शक्ति कह , निर्बल के बल राम । ।
ओ मानस के रचयिता , तुलसी तुम्हें प्रणाम । ।
( 7 )
वचन व्यंग , वक्रोक्ति , कटु या कि हास , परिहास ।
लग जाती है बात जब , बनते तुलसीदास । ।
( 8 )
जब भी चलती है कहीं , मर्यादा की बात । ।
सम्मुख आता एक ही , राम - नाम विख्यात । ।
( 9 )
अशरण को देते शरण , दीन - दुखी के धाम ।
सत्य - शील - सौन्दर्य की , दिव्य मूर्ति श्री राम । ।
( 10 )
कंचन - मृग है सिर्फ छल , सीता सकीं न जान । ।
पर कितना भारी पड़ा , उनको यह अज्ञान । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - ''मेरी छोटी आँजुरी '' , पृष्ठ - 26 - 27
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