भाग -1 से आगे -
( 7 )
अश्रु बहाता कवि स्वयं , समझ और का नीर ।
' तुलसीदास ' लिखा गयी , ' महाप्राण ' की पीर । ।
( 8 )
सम्पादक के द्वार जो , तिरस्कृता - निष्पन्द ।
थी वह ' जूही की कली ' , नव कविता की गन्ध । ।
( 9 )
विद्रोही तेवर रहे , रूढ़ि सभी दीं तोड़ ।
छन्द - भाव - भाषा सभी , के मुँह डाले मोड़ । ।
( 10 )
पीड़ा और अभाव ही , मसिजीवी का भाग्य ।
रहा निराला का यही , महज एक दुर्भाग्य । ।
( 11 )
' मुक्तछन्द ' के ओ जनक , ओ शोषण के काल ।
कालजयी , युग - प्रवर्तक , सांस्कृति वेताल । ।
( 12 )
बंकिम - शरद - रवीन्द्र त्रय , हैं तुमसे जीवन्त ।
अधुनातन कवि - कुल - गुरु , चरणों नमन अनन्त । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' मेरी छोटी आँजुरी '' , पृष्ठ - 30 ,31
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