( 1 )
हुए ' रुनकता ' ग्राम में , सूरदास उत्पन्न ।
आँख नहीं , थे ठीकरे , देख हुए सब सन्न । ।
( 2 )
कुछ कहते ' सीही ' जनम , हुए बाद में अन्ध ।
' रामदास ' पितृव्य थे , सारस्वत कुल - चन्द । ।
( 3 )
सुर मीठे , गायन - निपुण , काव्य - कला - निष्णात ।
रचते पद ' गौघाट ' पर , विनय - दीनता - स्नात । ।
( 4 )
' वल्लभ प्रभु ' ने जब सुने , सूरदास के बोल ।
' सूरा ह्वै घिघियात क्यों ? ' कह दीं आँखें खोल । ।
( 5 )
प्रभु के पारस - परस से , सूर्य हो गये सूर ।
कृष्ण भक्ति जागी , जगा दिव्य दृस्टि का नूर । ।
( शेष भाग - 2 में )
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' मेरी छोटी आँजुरी '' , पृष्ठ - 28
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