आँसुओं से आज बोझिल
कण्ठ मेरा रुँध गया है ! !
बाँध टूटा आँसुओं का
स्रोत ज्यों फूटा कुँओं का ,
किन्तु मेरे प्राण में है -
ताप क्यों जलती लुओं का ?
युग - युगों के वास्ते अब ,
खुले दुख के रास्ते जब ,
इक तुम्हारा द्वार मुझको
तब सदा को मुँद गया है !
आँसुओं से आज बोझिल
कण्ठ मेरा रुँध गया है ! !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 20
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