गीतों के स्वर टूट रहे हैं । ।
सुघर - सलोने सपने मेरे ,
सुबह हुई तो झूठ रहे हैं ।
गीतों के स्वर टूट रहे हैं । ।
छाले दृग में पड़े , ज्योति
आशा - विद्युत की सहन नहीं थी ,
क्योंकि निराशा के तम की ही
आँखें तो अभ्यस्त रही थीं ;
रिसता है पानी , सुधियों के
स्यात फफोले फूट रहे हैं ।
गीतों के स्वर टूट रहे हैं । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
_______________________
पुस्तक - '' '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 15
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
No comments:
Post a Comment