दुनियाँ कहती मैं रोता हूँ ! !
पर मैं नयनों की सीपी में ,
आँसू के मोती बोता हूँ !
दुनियाँ कहती मैं रोता हूँ ! !
सब मेरा उपहास उड़ाते ,
किन्तु मूक मेरी वाणी है ,
रोक रहा जो कुछ कहने से
वह इन आँखों का पानी है ;
समझो चाहे जो कुछ मन में ,
क्या रक्खा पर अबगुंठन में ,
इस गंगाजल से मैं अपने
युग - युग के कल्मष धोता हूँ !
दुनियाँ कहती मैं रोता हूँ ! !
- श्रीकृष्ण शर्मा
_______________________
पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 21
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-07-2015) को "मिज़ाज मौसम का" (चर्चा अंक-2044) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद मयंक जी |
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति
ReplyDelete