Saturday, August 1, 2015

पुस्तक ( दोहा संग्रह ) - मेरी छोटी आँजुरी '' के शीर्षक - '' संग - साथ थे जो कभी '' से लिए गए दोहे ( भाग - ३ )









( भाग - २ से आगे - )

( 13 )

जो हमको कहते रहे ,थे अपना सरताज |
आज थक गये हम उन्हें , लगा - लगा आवाज |

( 14)

आँखें धुंधलाने लगीं , लगे  टूटने बिम्ब |
लेकिन ज्यों का त्यों चटख , अब भी वह प्रतिबिम्ब |

( 15)

रात - रात भर भूनता , हमें दर्द - भड़भूँज |
दिन भर हम कटते रहे , जैसे हों तरबूज |

( 16)

इन राहों में जो मिले , मुझको मित्र - अमित्र |
उनके माथे हो तिलक , उनकी सुधियों इत्र |

( 17 )

जो अपने अनुकूल था , बीत गया वह वक्त |
हम बन करके रह गये , आज सिर्फ कमबख्त |

( 18 )

इन राहों से गुजर कर , कहीं खो गया हास |
पत्थर बनकर रह गया , मोमीला अहसास |

( शेष भाग -4 पर )




                                  - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' मेरी छोटी आँजुरी ''  ,  पृष्ठ - 38










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