Tuesday, August 11, 2015

पुस्तक ( गीत - संग्रह ) - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गीत- '' मेरी ग़लती थी ! ''

शायद मेरी ही गलती थी । । 

घिरी हुई थी जब कि यामिनी ,
सोच रहा था मैं विहान की ,
आज शिशिर का प्रात आ गया ,
पर ख़ामोशी सूनसान की ;

इससे तो वह रात भली थी ,
रजत चाँदनी जब बहती थी ,
जब पखवाड़े वाद चाँद से ,
मिलने की आशा रहती थी ;

थे जब मन के पास सितारे ,
सपने थे आँखों के द्वारे ,

आज तरसता हूँ मैं जिसको ,
वही मुझे पहले खलती थी । 

शायद मेरी ही गलती थी । ।


                                  - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन ''  ,   पृष्ठ - 27


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