मत करो अब आज तो उपहास !!
वेदना के सिंधु में जब डूब ,
आज गीली हो गई हर साँस !
मत करो अब आज तो उपहास !!
मौन ने बंदी किये हैं होंठ ,
नीड़ आँखों को बनाए ओस ,
दृष्टि में बैठी हुई है धुंध ,
भाग्य का मुझ पर बड़ा आक्रोश ,
और अपनों की परिधि से दूर ,
मैं बहिष्कृत औ ' बहुत मजबूर ,
मिल न पाया आस का भी स्पर्श ,
तोड़ मुझको हँस रहे संघर्ष ,
क्या करूँ मैं , क्या करूँ मैं आज ?
जब तुम्हारे भी ह्रदय से बंधु ,
ले चुकी संवेदना संन्यास !
मत करो अब आज तो उपहास !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 32
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