हर तबाही से बचा जो शेष , वह मैं हूँ !!
सुखों की ख़ातिर सहे मैंने सभी संताप ,
प्यार पाने के लिए करता रहा हर पाप ,
गैर मनमाफ़िक नहीं जब कर सका व्यवहार ,
जो मिले थे , ढो रहा हूँ मैं सभी वे शाप ;
जो ख़ुशी आई , गई वह दर्द को वो कर ,
यदि मिला भी कुछ , मिला वह उफ़ सभी खो कर ,
देख लो , जो देखने की चाह है तुमको ,
यदि भविष्यत् का स्वयं का वेश , वह मैं हूँ !
हर तबाही से बचा जो शेष , वह मैं हूँ !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 34
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