मैं मन पर पत्थर रख लूँगा ,
यदि तुमको जाना है , जाओ !
लेकिन आँसुओं से धीरज की
रेतीली दीवार न ढाओ ! !
शूल तुम्हारे पथ में होंगे ,
उठे धूल के बादल होंगे ,
आँधी - पानी धूप और लू
घायल मन , ऊबे पल होंगे ;
पर बिछुड़न से टूटे प्रण ये ,
सूनेपन से झुलसे क्षण ये ,
कहते - आँसुओं की बदली में ,
मेरी ज्योति , तनिक मुस्काओ !
मैं मन पर पत्थर रख लूँगा ,
यदि तुमको जाना है , जाओ ! !
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 25
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