चल रहा है भूमि का
औ ' व्योम का अभिसार !!
आज मन की सतह से
ऊपर रही उठ याद ,
झाँकती है स्नेह - बदली
एक युग के बाद ;
प्रीति का त्यौहार
ये बरसात ,
दूर नभ को चूमता है ,
जब किसी का प्यार !
चल रहा है भूमि का
औ ' व्योम का अभिसार !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 41
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