बंधु , यह तो वक्त की है बात !!
सत्य को समझा गया जब झूठ ,
स्वत्व को माना गया जब लूट ,
उफ़ , मनाने पर नहीं माना
सिरफिरा अपना गया जब रूठ ;
चाँदनी के घर कुहासा है ,
सिंधु जब नभ में रुआँसा है ,
बर्फ़ की तह है जमी मन पर ,
तप्त आतप का कि जब उत्पात !
बंधु , यह तो वक्त की है बात !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 35
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