… और अब मेरे नयन पथरा रहे हैं । ।
आँख के आकाश में बस आज केवल ,
मृत्यु के बादल सघन घहरा रहे हैं ।
… और अब मेरे नयन पथरा रहे हैं । ।
हँस रही मेरे अधर पर रेख नीली ,
आज अंतिम बार मेरी आँख गीली ,
मैं झरूँगा आज पतझर - पात - जैसा ,
इसलिए ही स्यात् मेरी देह पीली ,
रो रहे दुख साथ थे जो एक युग से ,
अब निराश्रित और बेघरबार हो कर ,
अब व्यथा ही रो रही है आठ आँसू ,
मैं जिसे लता रहा दिन - रात ढो कर ,
साथ किसका दूँ , कहो जब आज मेरे ,
प्राण ही मुझको स्वयं बिसरा रहे हैं ?
… और अब मेरे नयन पथरा रहे हैं । ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 33
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