Tuesday, August 4, 2015

पुस्तक ( दोहा संग्रह ) - '' मेरी छोटी आँजुरी '' के शीर्षक - '' संग - साथ थे जो कभी '' से लिए गए दोहे ( भाग - 4 )









( 19 )

एक आग चलती रही , सदा हमारे साथ |
सांस - सांस ऐसे जली , पल भर रही न रात |

( 20 )

पता न जाने क्या हुआ ,बदल गए सब तौर |
हम अनजाने हो गए , आया ऐसा दौर |

( 21 )

रात - रात भर हम रहे , सपनों में महफूज |
फिर दिन भर सुनते रहे , सपनों की अनूगूँज |

( 22 )

हितू - मितू , छोटे - बड़े , घर - बाहर के ठौर |
सुध आते कुछ अधिक ही , देख आज का दौर |

( 23 )

कहते हैं  हम राह में , बिछी हुई है आग |
लेकिन हमको तो मिले , पानी भरे तड़ाग |


                           
                                     - श्रीकृष्ण शर्मा 

_______________________________________________________

पुस्तक - '' मेरी छोटी आँजुरी '' ,  पृष्ठ - 38 , 39












sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com

No comments:

Post a Comment