Saturday, August 22, 2015

पुस्तक ( गीत - संग्रह ) - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गीत - '' स्वर्ग की ख़ातिर ''









इस ऊँचे आसमाँ की बुलंदी को क्या करूँ ?
मैं हूँ पखेरू , गर न उड़ूँ भी तो क्या करूँ ?

सूरज की आग मुझको राख तो न कर सकी ,
पर मेरे इन परों को नई आब दे गई ,
मेरा वजूद भी है कुछ इस दौरे वक्त में ,
धरती को ये तहरीर मेरी छाँव दे गई ,

ताउम्र मैं हवा के इर्द - गिर्द ही रहा ,
झिंझोड़ा बगूलों ने , कहर मौत का सहा ,

ये ज़िंदगी * अजीयतों * का नर्क ही सही 
पर स्वर्ग की ख़ातिर न लडूँ भी तो क्या करूँ ?

इस ऊँचे आसमाँ की बुलंदी को क्या करूँ ?
मैं हूँ पखेरू , गर न उड़ूँ भी तो क्या करूँ ?

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* यातनाओं 


                                                 - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन ''  ,  पृष्ठ - 36









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