Wednesday, August 12, 2015

पुस्तक ( गीत - संग्रह ) - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गीत - '' व्यथा अँगड़ाई ''









प्राणों की इस पर्णकुटी में ,
इतनी पीर समाई कैसे ?
घृणा - उपेक्षा सहकर भी यह 
व्यथा आज अँगड़ाई कैसे ?

कितनी बरती थी होशियारी ,
कितनी गर्द - गुबार बुहारी ,
ख्वाहिश को बंदी रख कर की 
भावुक मन की पहरेदारी ;

पर किस दुर्बलता के पल ने ,
किस छलना के निर्मम छल ने ,

आँसुओं की बाढ़ में न जाने ,
यह ज्वाला सुलगाई कैसे ?
प्राणों की इस पर्णकुटी में ,
इतनी पीर समाई कैसे ?


                                       - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन ''  ,  पृष्ठ - 28












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shrikrishnasharma.wordpress.com

2 comments:

  1. शब्द नहीं कहने को ,आत,आत्मा अकुलाई है ,
    आपने भी क्या खूब ,ये पंक्तियां पढवाई हैं ,
    सुंदर शब्दों का चयन , संयोजन कर के लाई हैं ,
    दिल से निकली ,रचना ये मन को हमारे भाई है ..
    बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

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  2. धन्यवाद मदन जी |

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