याद किसी की लेकर जाने
मन क्यों भारी आज हो उठा ?
उलझ किसी मीठी सुधियों में ,
खुद को ही मैं आज खो उठा ! !
भूल गया मैं सब कुछ अपना ,
याद रहा बस केवल तपना ,
तप - तपकर साँसों का घुटना ,
बनकर वाष्प गगन में उठना ,
फिर ठंडी बेदर्द कसक का ,
मिलकर चोट मर्म पर करना ,
सहन नहीं कर मेघों - जैसा ,
नयनों का झर - झर झर पड़ना ,
किन्तु सभी कह उठते - ' देखो ,
देखो , पागल आज रो उठा !
याद किसी की लेकर जाने
मन क्यों भारी आज हो उठा ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 29
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