नहीं , अब रहनुमाओं से नहीं कुछ होने वाला है । ।
कि धोखेबाज़ - ख़ुदग़जों के सीने हो गए पत्थर ,
इबादत या सदाओं से नहीं कुछ होने वाला है ।
नहीं , अब रहनुमाओं से नहीं कुछ होने वाला है । ।
मची जद्दोजहद है और अफ़रा और तफ़री है ,
बड़ों को राजपथ , छोटों की गलियाँ किन्तु सँकरी हैं ,
बड़ों के लिए पौबारह हैं , चौके और छक्के हैं ,
कि साधारण जनों को गम हैं , आँसू और धक्के हैं ;
चटक रंग ज़िन्दगी के आज मैले और फीके हैं ,
कि होते नित - नये ईजाद शोषण के तरीक़े हैं ;
यहाँ से वहाँ तक बहुरूपिये , ठग और हत्यारे ,
नहीं *ख्वाजासराओं * से नहीं कुछ होने वाला है ।
नहीं , अब रहनुमाओं से नहीं कुछ होने वाला है । ।
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* हरम का रखवाला हिजड़ा .
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 79
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