इससे तो था भला मौन ही में रहता !!
सुनी - अनसुनी जब तुमने बातें कर दीं ,
तब भी तो मैं गया सिर्फ अपनी कहता !
इससे तो था भला मौन ही में रहता !!
सच है , मैं अपनी पीड़ा में खोया था ,
तुम डूबे थे अपने सुख की यादों में ,
चाह रहा था व्यथा - कथा अपनी कहना ,
पर तुम फागुन थे , था सावन - भादों मैं ,
कैसे भला बात फिर बननी थी बोलो ?
सम्मुख रह कर भी गर होठ न तुम खोलो ,
ऐसी निर्ममता ? आँसू क्या , मन टूटा
कब्र सरीखा मौन और कब तक सहता ?
इससे तो था भला मौन ही में रहता !!
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 39
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 39
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