तुम क्यों इस तरह मुझे ,
देख रहे भाई ?
मैं भी तो तुम - सा हूँ
एक आम आदमी ,
एक क्या हजारों हैं
मुझमें भी तो कमी ,
लेकिन मैं बाहर जो
हूँ वैसा ही भीतर ,
अभिशापित बस्ती का
हतभागी एक शिखर ,
जिसको दिन ने मारा ,
रातों ने पर जिसकी
आरती सजाई !
तुम क्यों इस तरह मुझे ,
देख रहे भाई ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन '' , पृष्ठ - 38
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