थम गया दिन
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थम गया दिन ।
पाँव फैलाये थकन
बैठी ,
उफ़ ,
यहाँ इतनी घुटन बैठी ;
- कि गूँगे हो गये
पल - छिन ।
थम गया दिन ।
क्या हुआ
जो आँख झूठी हैं ,
अँधेरे से
लदी खूँटी हैं
- टँगे कैसे दृश्य ?
इस सीमेण्ट की
दीवार में
गड़ते नहीं पिन ।
थम गया दिन ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1964 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 70
sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
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थम गया दिन ।
पाँव फैलाये थकन
बैठी ,
उफ़ ,
यहाँ इतनी घुटन बैठी ;
- कि गूँगे हो गये
पल - छिन ।
थम गया दिन ।
क्या हुआ
जो आँख झूठी हैं ,
अँधेरे से
लदी खूँटी हैं
- टँगे कैसे दृश्य ?
इस सीमेण्ट की
दीवार में
गड़ते नहीं पिन ।
थम गया दिन ।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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( रचनाकाल - 1964 ) , पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 70
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